श्री महात्रिपुरसुन्दरी का श्यामा और शाम्भवी सानिध्य !

कामेश्वरी की स्वारसिक समरसता को प्राप्त परा-तत्व ही महा त्रिपुरसुंदरी के रूप में विराजमान हैं तथा यही सर्वानन्दमयी, सकलाधिष्ठान ( सर्व स्थान में व्याप्त ) देवी ललिताम्बिका हैं। देवी में सभी वेदांतो का तात्पर्य-अर्थ समाहित हैं तथा चराचर जगत के समस्त कार्य इन्हीं देवी में प्रतिष्ठित हैं। देवी में न शिव की प्रधानता हैं और न ही शक्ति की, अपितु शिव तथा शक्ति (‘अर्धनारीश्वर’) दोनों की समानता हैं। समस्त तत्वों के…

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श्री श्री चक्रराज मण्डल रहस्य महामहिमा वर्णन !

ॐ अङ्काधिरूढया श्रीवल्लभयाऽऽश्लिष्टसुन्दरस्वाङ्गम् । कुङ्कुमपङ्किलदेहं शङ्करतनयं नमामि वाक्सिद्ध्यै ॥ १॥ जय जय चक्राधीश्वरि जय जय लोकैकपरजननि । जय जय निगमातीते जय जय कामेशवामाक्षि ॥ २॥ कदा देवि साङ्गां मुदा पूजयित्वा हृदि ब्रह्ममोदं भजेयं कृतार्थी भवेयं क्षणार्थी सदा लोकतन्त्रे निमग्नस्त्वदर्चां विधानेन कर्तुम् । विहीनः स्वशक्त्या स्तवेनापि राज्ञीं सदा भावयामीति कृत्वा हृदब्जे पदाब्जं त्वदीयं सदा भावयित्वा धिया पूजयामि ॥ प्रकृष्टे त्रिरेखाधराश्रेणिप्रसिद्धाभिरीड्यां च मात्रौघसंसेव्यमानां च सङ्क्षोभिणीमुख्यमुद्राधिदेवीभिराराध्यमानां त्रिलोकैकमोहाख्य- चक्राधिदेवीं त्रिपूर्वां पुरां लोकधात्रीं प्रकटाख्यदेवीभिराराध्यमानां च सङ्क्षोभिणीमुद्रया…

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श्रीबाला त्रिपुरसुन्दरी नाम का महत्व एवं परिचय !

माँ श्री बाला त्रिपुर-सुन्दरी मां भगवती का बाला सुंदरी स्वरुप है. ‘दस महा-विद्याओ’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं । वास्तव में आदि-शक्ति एक ही हैं, उन्हीं का आदि रुप ‘काली’ है और उसी रुप का विकसित स्वरुप ‘षोडशी’ है, इसी से ‘षोडशी’ को ‘रक्त-काली या दक्षिणकाली’ नाम से भी स्मरण किया जाता है । भगवती तारा का रुप ‘काली’ और ‘षोडशी’ के मध्य का…

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त्रिपुरा शब्द का महत्व एवं परिचय !

बाला, बाला-त्रिपुरा, त्रिपुरा-बाला, बाला-सुंदरी, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, पिण्डी-भूता त्रिपुरा, काम-त्रिपुरा, त्रिपुर-भैरवी, वाक-त्रिपुरा, महा-लक्ष्मी-त्रिपुरा, बाला-भैरवी, श्रीललिता राजराजेश्वरी, षोडशी, श्रीललिता महा-त्रिपुरा-सुंदरी, के अन्य भेद सभी श्री श्री विद्या के नाम से पुकारे जाते है | इन सभी विद्या की उपासना ऊधर्वाम्नाय से होती है | बाला, बाला-त्रिपुरा और बाला-त्रिपुर-सुंदरी नामों से एक ही महा विद्या को सम्बोधित किया जाता है | किसी भी नाम से उपासना की जाये, उपासना तो जगन्माता की ही की जाती…

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अत्यंत गोपनीय तंत्रराज (कादीमत) का परिचय !

कादी विद्या अत्यंत गोपनीय है। इसका रहस्य गुरू के मुख से ग्रहण योग्य है। सम्मोहन तंत्र के अनुसार तारा, तारा का साधक, कादी तथा हादी दोनों मत से संश्लिष्ट है। हंस तारा, महाविद्या, योगेश्वरी कादियों की दृष्टि से काली, हादियों की दृष्टि से शिवसुदरी और कहादी उपासकों की दृष्टि से हंस है। श्रीविद्यार्णव के अनुसार कादी मत मधुमती है। यह त्रिपुरा उपासना का प्रथम भेद है। दूसरा मत मालिनी मत (काली…

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हादी कादी सहित श्रीविद्या के सभी संप्रदायों का परिचय !

श्रीविद्या के मुख्य 12 संप्रदाय हैं। इनमें से बहुत से संप्रदाय लुप्त हो गए है, केवल आनन्द भैरव, मन्मथ और कुछ अंश में हयग्रीव व लोपामुद्रा का संप्रदाय अभी जीवित है । कामराज विद्या (कादी) और पंचदशवर्णात्मक तंत्रराज और त्रिपुरोपनिषद के समान लोपामुद्रा विद्या आदि भी पंचदशवर्णात्मक हैं। कामेश्वर अंकस्थित कामेश्वरी की पूजा के अवसर पर इस विद्या का उपयोग होता है। लोपामुद्रा अगस्त्य की धर्मपत्नी थीं। वह विदर्भराज की कन्या…

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श्रीविद्या के आदि उपासकों का परिचय !

श्री विद्या देवी ललिता त्रिपुरसुन्दरी से सम्बन्धित तन्त्र विद्या का आदि सनातन सम्प्रदाय है। ललितासहस्रनाम में इनके एक सहस्र (एक हजार) नामों का वर्णन है। ललिता सहस्रनाम में श्रीविद्या के संकल्पनाओं का वर्णन है। श्रीविद्या सम्प्रदाय आत्मानुभूति के साथ-साथ भौतिक समृद्धि को भी जीवन के लक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है। श्रीविद्या का साहित्य विशाल है। अलग-अलग ग्रन्थों में इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित कुछ अलग-अलग बातें कहीं गयी हैं किन्तु…

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श्रीविद्या विषयक प्राचीन व मूल ग्रन्थों का परिचय !

श्रीविद्या विषयक कुछ प्राचीन व मूल ग्रन्थों का परिचय ये हैं – 1. तंत्रराज – इसकी बहुत टीकाएँ हैं। सुभगानन्दनाथ कृत मनोरमा मुख्य है। इसपर प्रेमनिधि की सुदर्शिनी नामक टीका भी है। भाष्स्कर की और शिवराम की टीकाएँ भी मिलती हैं। 2. तंत्रराजोत्तर 3. परानन्द या परमानन्दतंत्र – किसी किसी के अनुसार यह श्रीविद्या का मुख्य उपासनाग्रंथ है। इसपर सुभगानंद की सुभगानंद संदोह नाम्नी टीका थ। कल्पसूत्र वृत्ति से मालूम होता…

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श्री विद्या साधकों के लिए विशेष त्रिपुरा तिलक स्तोत्रम् !

ॐ कल्प शाखिगण सत्प्रसून मधुपानकेलिकुतुक भ्रमत् षट्पदारवमनोहरे कनकभूधरे ललितमण्डपे । अत्युदारमणिपीठमध्यविनिवासिनीमखिलमोहिनीं भक्तियोगसुलभां भजे भुवनमातरं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥ १॥ एककालसमुदीयमानतरुणार्ककोटिसदृशस्फुर- द्देहकान्तिभरधोरणीमिलनलोहितीकृतदिगन्तराम् । वागधीतविभवां विपद्यभयदायिनीमखिलमोहिनीं आगमार्थमणिदीपिकामनिशमाश्रये त्रिपुरसुन्दरिम् ॥ २॥ ईषदुन्मिषदमर्त्यशाखिकुसुमावलीविमलतारका- वृन्दसुन्दरसुधांशुखण्डसुभगीकृतातिगुरुकैशिकाम् । नीलकुञ्चितघनालकां निटिलभुषणायतविलोचनां नीलकण्ठसुकृतोन्नतिं सततमाश्रये त्रिपुरसुन्दरीम् ॥ ३॥ लक्ष्महीनविधुलक्षनिर्जितविचक्षणाननसरोरुहां इक्षुकार्मुकशरासनोपमितचिल्लिकायुगमतल्लिकाम् । लक्षये मनसि सन्ततं सकलदुष्कृतक्षयविधायिनीं उक्षवाहनतपोविभूतिमहदक्षरां त्रिपुरसुन्दरीम् ॥ ४॥ ह्रीमदप्रमदकामकौतुककृपादिभावपिशुनायत- स्निग्धमुग्धविशदत्रिवर्णविमलालसालसविलोचनाम् । सुन्दराधरमणिप्रभामिलितमन्दहासनवचन्द्रिकां चन्द्रशेखरकुटुम्बिनीमनिशमाश्रये त्रिपुरसुन्दरीम् ॥ ५॥ हस्तमृष्टमणिदर्पणोज्ज्वलमनोज्ञदण्डफलकद्वये बिम्बितानुपमकुण्डलस्तबकमण्डिताननसरोरुहाम् । स्वर्णपङ्कजदलान्तरुल्लसितकर्णिकासदृशनासिकां कर्णवैरिसखसोदरीमनिशमाश्रये त्रिपुरसुन्दरीम् ॥ ६॥ सन्मरन्दरसमाधुरीतुलनकर्मठाक्षरसमुल्लस- न्नर्मपेशलवचोविलासपरिभूतनिर्मलसुधारसाम् । कम्रवक्त्रपवनाग्रहप्रचलदुन्मिषद्भ्रमरमण्डलां तुर्महे मनसि शर्मदामनिशमम्बिकां त्रिपुरसुन्दरीम्…

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श्री महात्रिपुरसुन्दरी सान्निध्य प्रद स्तवन !

ॐ कल्प-भानु समान-भास्वर-धाम-लोचन-गोचरम् किं किमित्यति-विस्मिते मयि पश्यतीह समागताम् । काल-कुन्तल-भार-निर्जित-नील-मेघ-कुलां पुरः चक्र-राज-निवासिनीं त्रिपुरेश्वरीमवलोकये ॥ १॥ एक-दन्त-षडाननादिभिरावृतां जगदीश्वरीम् एनसां परि-पन्थिनिमहमेक-भक्ति-मदर्चिताम् । एक-हीन-शतेषु जन्मसु सञ्चितात् सुकृतादिमाम् चक्र-राज-निवासिनीं त्रिपुरेश्वरीमवलोकये ॥ २॥ ईदृशीति च वेद-कुन्तल-वाग्भिरप्य निरूपिताम् ईश-पङ्जज-नाभ-सृष्टि-कृदादि-वन्द्य-पदाम्बुजाम् । ईक्षणान्त-निरीक्षणेन मदिष्टदां पुरतोऽधुना चक्र-राज-निवासिनीं त्रिपुरेश्वरीमवलोकये ॥ ३॥ लक्षणोज्जवल-हार-शोभि-पयोधर-द्वय-कैतवात् लीलयैव दया-रस-स्रवदुज्ज्वलत्-कलशान्विताम् । लाक्षयाङ्कित-पादपाति-मिलिन्द-सन्ततिमग्रतः, चक्र-राज-निवासिनीं त्रिपुरेश्वरीमवलोकये ॥ ४॥ ह्रीमिति प्रति-वासरं जप-सुस्थिरोऽहमुदारया योगि-मार्ग-निरूढयैक्य-सुभावनां गतया धिया । वत्स ! हर्षमवाप्त-वत्यहमित्युदार-गिरं पुरः चक्र-राज-निवासिनीं त्रिपुरेश्वरीमवलोकये ॥ ५॥ हंस-वृन्दमलक्तकारुण-पाद-पङ्कज-नुपुर- क्वाण-मोहितमादरादनु-धावितं मृदु शृण्वतीम् । हंस-मन्त्र-महार्थ-तत्त्व-मयीं…

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