श्री कमला (राजराजेश्वरी) महाविद्या का संक्षिप्त परिचय शाबर मन्त्र सहित !

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श्री कमला महाविद्या इस श्रष्टि की केन्द्रीय सर्वोच्च नियामक एवं क्रियात्मक सत्ता मूल शक्ति की प्रकृति (गुण) स्वरूपी प्रधान सोलह कलाओं में से दशम कला, प्रवृत्ति (स्वभाव) स्वरूपी प्रधान सोलह योगिनियों में से दशम योगिनी, तुरीय आदि प्रधान सोलह अवस्थाओं में से दशम अवस्था एवं चतु: आयाम से युक्त क्रिया रूपी सोलह विद्याओं में से दशम विद्या के रूप में सृजित हुई है !

यह महाविद्या इस लोक में सनातन धर्म व संस्कृति से प्रेरित सम्प्रदायों में दस महाविद्याओं में श्री कमला महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं । जबकि इस लोक व अन्य लोकों में सनातन धर्म से प्रेरित सम्प्रदायों के अतिरिक्त अन्य धर्म व सम्प्रदायों में उनकी अपनी भाषा, संस्कृति व मत के अनुसार अन्य अनेक नामों से जानी जाती हैं ।

देवी कमला या कमलात्मिका, दस महाविद्याओं में दसवें स्थान पर अवस्थित तथा कमल या पद्म पुष्प के समान दिव्यता की प्रतीक हैं । देवी कमला, तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जानी जाती हैं, देवी का सम्बन्ध सम्पन्नता, सुख, समृद्धि, सौभाग्य और वंश विस्तार से हैं । दस महाविद्याओं की श्रेणी में देवी कमला अंतिम स्थान पर अवस्थित हैं ।

श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द में देवी कमला के उद्भव की कथा प्राप्त होती हैं । देवी कमला का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ; एक बार देवताओं तथा दानवों ने समुद्र का मंथन किया, जिनमें अमृत प्राप्त करना मुख्य था । दुर्वासा मुनि के श्राप के कारण सभी देवता लक्ष्मी या श्री हीन हो गए थे, यहाँ तक ही भगवान विष्णु को भी लक्ष्मी जी ने त्याग कर दिया था ।

पुनः श्री सम्पन्न होने हेतु या नाना प्रकार के रत्नों को प्राप्त कर समृद्धि हेतु, देवताओं तथा दैत्यों ने समुद्र का मंथन किया । समुद्र मंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए, उन चौदह रत्नों में धन, राज सुख व समृद्धि की देवी ‘कमला’ तथा निर्धन की देवी ‘निऋति या अलक्ष्मी’ नमक दो बहनों का प्रादुर्भाव हुआ था । जिनमें, देवी कमला भगवान विष्णु को दे दी गई और निऋति दुसह नामक ऋषि को । देवी, भगवान विष्णु से विवाह के पश्चात, कमला-लक्ष्मी नाम से विख्यात हुई ।

तत्पश्चात देवी कमला ने विशेष स्थान पाने हेतु, ‘श्री विद्या की कठोर आराधना की, उनकी अराधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरा ने उन्हें श्री उपाधि प्रदान की तथा महाविद्याओं में स्थान दिया । उस समय से देवी का सम्बन्ध पूर्णतः धन, समृद्धि तथा राज सुखों से है ।

देवी सत्व गुण से सम्बद्ध हैं, धन तथा सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं । स्वच्छता, पवित्रता, निर्मलता देवी को अति प्रिय हैं तथा देवी ऐसे स्थानों में ही वास करती हैं । प्रकाश से देवी कमला का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं, देवी उन्हीं स्थानों को अपना निवास स्थान बनती हैं जहां अँधेरा न हो, इसके विपरीत देवी की बहन अलक्ष्मी, ज्येष्ठा, निऋति जो निर्धनता, दुर्भाग्य से सम्बंधित हैं, अंधेरे तथा अपवित्र स्थानों को ही अपना निवास स्थान बनती हैं । देवी कमला के स्थिर निवास हेतु स्वच्छता तथा पवित्रता अत्यंत आवश्यक हैं ।

देवी की आराधना तीनों लोकों में सभी के द्वारा की जाती हैं, दानव या दैत्य, देवता तथा मनुष्य सभी को देवी कृपा की आवश्यकता रहती हैं; क्योंकि सुख तथा समृद्धि सभी प्राप्त करना चाहते हैं । देवी आदि काल से ही त्रि-भुवन के समस्त प्राणियों द्वारा पूजित हैं । देवी की कृपा के बिना, निर्धनता, दुर्भाग्य, रोग ग्रस्त, कलह इत्यादि जातक से सदा संलग्न रहता हैं परिणामस्वरूप जातक रोग ग्रस्त, अभाव युक्त, धन हीन, निराश, उदास रहता हैं । देवी कमला ही समस्त प्रकार के सुख, समृद्धि, वैभव इत्यादि सभी प्राणियों, देवताओं तथा दैत्यों को प्रदान करती हैं । एक बार देवता यहाँ तक ही भगवान विष्णु भी लक्ष्मी हीन हो गए थे, परिणामस्वरूप सभी दरिद्र तथा सुख-वैभव रहित हो गए थे ।

यह देवी अनन्त समृद्धि, धन, यश, प्रतिष्ठा, शासन – सत्तात्मक शक्तियों की स्वामिनी होने के कारण आदिकाल से ही राजघरानों व अन्य सर्व समृद्ध वंशों या व्यक्तियों के द्वारा पूजित व आराधित होते रहने के कारण ही “श्री राजराजेश्वरी” कहलाती हैं ! तथा जो व्यक्ति इनकी उपासना या साधना करता है, वह व्यक्ति अनन्त समृद्धि, धन, यश, प्रतिष्ठा, शासन – सत्तात्मक शक्तियों से सम्पन्न हो जाता है !

सभी धर्मों के अंतर्गत कमल पुष्प को बहुत पवित्र तथा महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं । बहुत से देवी देवताओं की साधना, आराधना में कमल पुष्प आवश्यक हैं तथा सभी देवताओं पर कमल पुष्प निवेदन कर सकते हैं । कमल की उत्पत्ति मैले, गंदे स्थानों पर होती हैं, परन्तु कमल के पुष्प पर मैल, गन्दगी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं, कमल अपनी दिव्य शोभा लिये, सर्वदा ही पवित्र रहता हैं तथा दिव्य पवित्रता को प्रदर्शित करता हैं । देवी कमला, कमल प्रिय हैं, कमल के आसान पर ही विराजमान रहती हैं, कमल के माला धारण करती हैं, कमल पुष्पों से ही घिरी हुई हैं ।

मुख्य नाम : कमला ।
अन्य नाम : लक्ष्मी, कमलात्मिका, श्री, राजराजेश्वरी ।
भैरव : श्री कमलेश्वर विष्णु ।
तिथि : कोजागरी पूर्णिमा, अश्विन मास पूर्णिमा ।
कुल : श्री कुल ।
दिशा : उत्तर-पूर्व ।
स्वभाव : सौम्य स्वभाव ।
कार्य : धन, सुख, समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी ।
शारीरिक वर्ण : सूर्य की कांति के समान ।

श्री कमला महाविद्या ध्यान :-

या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी ।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया ।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः । मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः ।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, वसतु मम गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता ।।

जाप मंत्र :-

(सभी शक्तियों के बीजमन्त्रों के लिए अत्यन्त गोपनीयता का विधान होता है इसी कारण से सभी शक्तियों के बीजमन्त्र एवं वैदिक मन्त्र मूल ग्रन्थों में गूढ़कृत लिखे गए हैं, गोपनीयता का विधान होने के कारण बीजमन्त्रों को कहीं भी सार्वजनिक लिखा या बोला नहीं जा सकता है, बीजमन्त्र को केवल दीक्षा विधान के द्वारा गुरुमुख से प्राप्त किया जा सकता है ! इसलिए यहां पर इन महाविद्या के वैदिक व बीजमन्त्र को नहीं लिखा गया है !)

शाबर मन्त्र :-

सत नमो आदेश,
गुरूजी को आदेश ॐ गुरूजी,
ॐ अयोनि शंकर ॐकार रूप,
कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप ।
हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा ।
श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा
देवी देवत्या ने किया जय ॐकार ।
कमला देवी पूजो केशर, पान, सुपारी,
चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल
सहस्र कमलों का किया हवन ।
कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो
ऋद्धि-सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान ।
जिसकी तीन लोक में भया मान ।
कमला देवी के चरण कमल को आदेश ।
इतना कमला जाप सम्पूर्ण भया,
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ||