श्री दुर्गा सप्तशती – नवार्ण मंत्र जप विधि !

स्नान के उपरान्त स्वच्छ वस्त्र व तिलक धारण कर गुरु व माता, पिता सहित सभी ज्येष्ठ जनों को प्रणाम करके आशीर्वाद प्राप्त कर उत्तर, पूर्व अथवा पूर्वोत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने आसन पर बैठकर सर्वप्रथम प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन हेतु आचमनी चम्मच में विनियोगार्थ जल लेकर विनियोग का उच्चारण करें :-

ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: ।

विनियोग हेतु आचमनी चम्मच का वह जल भूमि पर गिरा दें ।

पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें –

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं । ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: ।

तदुपरांत गुरू गणपति गौरी व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर अपने कुल के कुलपित्र, कुलगुरु, कुलदेवता व कुलदेवी का विधिवत् पूजन संपन्न कर नवार्ण मन्त्र साधना प्रारम्भ करनी चाहिए । *

नवार्ण मन्त्र साधना हेतु आचमनी चम्मच में विनियोगार्थ जल लेकर विनियोग का उच्चारण करें :-

ॐ अस्य श्री नवार्ण महामन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्र ऋषयः, गायत्री उष्णिक अनुष्टुप छन्द:, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतयो देवताः, श्री रक्त दन्तिका दुर्गा भ्रामरी बीजम्, श्री नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्तिः, श्री अग्नि वायुसूर्यास्तत्वानि, ऋग् यजुः सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री दुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे श्री नवार्ण महामन्त्र जपे विनियोगः ।

विनियोग हेतु आचमनी चम्मच का वह जल भूमि पर गिरा दें ।

ऋष्यादि न्यास करें :-

1 :- ॐ ब्रह्मा विष्णु रुद्र ऋषिभ्यो नमः शिरसि ! (सिर पर स्पर्श करें !)
2 :- ॐ गायत्री उष्णिक अनुष्टुप छन्देभ्यो नमः मुखे ! (मुख पर स्पर्श करें !)
3 :- ॐ श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदये ! (हृदय पर स्पर्श करें !)
4 :- ॐ ऐं बीज सहिताया रक्त दन्तिका दुर्गा भ्रामरी देवताभ्यो नमः लिंगे ! (लिंग पर स्पर्श करें !)
5 :- ॐ ह्रीं शक्ति सहितायै नन्दा शाकम्भरी भीमा देवताभ्यो नमः नाभौ ! (नाभि पर स्पर्श करें !)
6 :- ॐ क्लीं कीलक सहितायै अग्नि वायु सूर्य तत्त्वेभ्यो नमः गुह्ये ! (नाभि से लिंग व मूलाधार तक स्पर्श करें !)
7 :- ॐ ऋग् यजुः साम स्वरुपिणी श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः पादौ ! (दोनों पैरों पर स्पर्श करें !)
8 :- ॐ श्री महादुर्गा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगायै नमः सर्वांगे । (सम्पूर्ण शरीर पर स्पर्श करें !)
इसके उपरान्त मन ही मन “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै” बोलकर कर हाथ धो लें ।

कर न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः ! (दोनों हाथ के अंगूठों पर स्पर्श करें !)
2 :- ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ! (दोनों हाथ की तर्जनी अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
3 :- ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां वषट ! ( दोनों हाथ की मध्यमा अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
4 :- ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुम् ! (दोनों हाथ की अनामिका अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
5 :- ॐ विच्चै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ! (दोनों हाथ की कनिष्ठिका अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
6 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै करतल कर पृष्ठाभ्यां फट् ! (दोनों हाथ की हथेली और बाहर के भाग पर स्पर्श करें !)

अंग न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं हृदयाय नमः ! (ह्रदय पर स्पर्श करें !)
2 :- ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ! (सिर पर स्पर्श करें !)
3 :- ॐ क्लीं शिखायै वषट् ! (शिखा पर स्पर्श करें !)
4 :- ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् ! (दोनों कन्धों पर स्पर्श करें !)
5 :- ॐ विच्चै नेत्र त्रयाय वौषट् ! (दोनों नेत्रों पर स्पर्श करें !)
6 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै अस्त्राय फट् ! (सिर के ऊपर से दाहिना हाथ घुमाकर ताली बजा दें !)

अक्षर न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं नमः शिखायां ! (शिखा पर स्पर्श करें !)
2 :- ॐ ह्रीं नमः दक्षिण नेत्रे ! (दाहिने नेत्र पर स्पर्श करें !)
3 :- ॐ क्लीं नमः वाम नेत्रे ! (बाएं नेत्र पर स्पर्श करें !)
4 :- ॐ चां नमः दक्षिण कर्णे ! (दाहिने कान पर स्पर्श करें !)
5 :- ॐ मुं नमः वाम कर्णे ! (बाएं कान पर स्पर्श करें !)
6 :- ॐ डां नमः दक्षिण नासा पुटे ! (नाक के दाहिने छिद्र पर स्पर्श करें !)
7 :- ॐ यैं नमः वाम नासा पुटे ! (नाक के बाएं छिद्र पर स्पर्श करें !)
8 :- ॐ विं नमः मुखे ! (मुख पर स्पर्श करें !)
9 :- ॐ च्चै नमः गुह्ये ! (नाभि से लिंग व मूलाधार तक स्पर्श करें !)

व्यापक न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः ! (अपने सामने प्रणाम करें !) दो बार !
2 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः ! (अपनी पीठ की ओर प्रणाम करें !) दो बार !
3 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः ! (अपने दाहिने प्रणाम करें !) दो बार !
4 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः ! (अपने बाएं प्रणाम करें !) दो बार !
5 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः ! (दोनों हाथों से सिर से पैर तक) न्यास करें !) आठ बार !
मूल नवार्ण मन्त्र से चार बार सम्मुख दो दो बार दोनों कुक्षि की ओर कुल आठ बार (दोनों हाथों से सिर से पैर तक) न्यास करें ।

दिग् न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं प्राच्यै नमः ! (पूर्व दिशा में प्रणाम करें !)
2 :- ॐ ऐं आग्नेयै नमः ! (आग्नेय दिशा में प्रणाम करें !)
3 :- ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः ! (दक्षिण दिशा में प्रणाम करें !)
4 :- ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः ! (नैर्ऋत्य दिशा में प्रणाम करें !)
5 :- ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः ! (पश्चिम दिशा में प्रणाम करें !)
6 :- ॐ क्लीं वायव्यै नमः ! (वायव्य दिशा में प्रणाम करें !)
7 :- ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः ! (उत्तर दिशा में प्रणाम करें !)
8 :- ॐ चामुण्डायै ईशान्यै नमः ! (ईशान दिशा में प्रणाम करें !)
9 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊर्ध्वायै नमः ! (आकाश की ओर प्रणाम करें !)
10 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै भूम्यै नमः ! (पृथ्वी की ओर प्रणाम करें !)

ब्रम्हरूप न्यास करें :-

1 :- ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ! (दोनों पैरों से नाभि तक स्पर्श करें !)
2 :- ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ! (नाभि से कण्ठ तक स्पर्श करें !)
3 :- ॐ रुद्र: त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां पातु ! (कण्ठ से शिखा तक स्पर्श करें !)

! भगवती श्री महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती जी का ध्यान करें !

ॐ खड्गं चक्रगदेषुचाप परिधाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः, शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाददशकां सेवे महाकालिकाम्, यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ।। १।।

ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां, दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।। २।।

ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छितांशुतुल्य प्रभाम् ।।
गौरीदेहसमुद्भुवां त्रिजगतामाधारभूतांमहा पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ।। ३।।

माला पूजन करें :-

प्राण प्रतिष्ठित अथवा मन्त्र चैतन्य स्फटिक, मूंगा या रुद्राक्ष की माला का “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” बोलकर गन्ध, अक्षत आदि से पूजन करके प्रार्थना करें :-

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरुपिणि । चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदाभव ।।
ॐ अविघ्नं कुरुमाले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे । जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ।।

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मन्त्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।

इसके उपरान्त माला को गोमुखी (माला रखने के थैली रूपी वस्त्र) में रखकर अंगूठा, अनामिका व मध्यमा अंगुली के सहयोग से “ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै” इस नवार्ण मन्त्र का प्राण प्रतिष्ठित अथवा मन्त्र चैतन्य स्फटिक, मूंगा या रुद्राक्ष की माला से साधना अनुष्ठान के नियम दैनिक क्रमानुसार मन्त्र जप सम्पन्न करें ।

नवार्ण मन्त्र का समान संख्या में बांटकर नौ, ग्यारह, सोलह, इक्कीस, सत्ताईस, इकत्तीस अथवा इकतालीस दिन में 1,25000 (सवा लाख) मन्त्र जप सम्पन्न करें ।

मन्त्र जप करते समय यह सावधानी अवश्य रखें कि जप माला को तर्जनी (अंगूठे के पास वाली) अंगुली का स्पर्श न हो जाए व जप माला को नाभि से नीचे नहीं लाना चाहिए, यदि जप माला को तर्जनी अंगुली का स्पर्श हो जाए या माला नाभि से नीचे आ जाए तो वह जप पुर्णतः खंडित हो जाता है ! इस स्थिति में पुनः प्रथम दिन से ही जप प्रारम्भ करने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं होता है ! अतः यदि जप माला को तर्जनी अंगुली का स्पर्श हो जाए या माला नाभि से नीचे आ जाए तो पुनः प्रथम दिन से ही जप प्रारम्भ करना चाहिए !

साधना अनुष्ठान के नियम दैनिक क्रम में प्रत्येक दिन समान संख्या में ही मन्त्र जप करना अनिवार्य होता है, किसी दिन कम या किसी दिन अधिक मन्त्र जप नहीं किया जा सकता है ।

! मन्त्र जप का समर्पण करें !

निम्नलिखित श्लोक को पढ़कर देवी के वाम हस्त में मानसिक रूप से मन्त्र जप को समर्पित करें, अथवा अपने गुरु के दाहिने हाथ में समर्पित करके प्रणाम करें ।

ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत् कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवि ! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि !

पुनः कर न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः ! (दोनों हाथ के अंगूठों पर स्पर्श करें !)
2 :- ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ! (दोनों हाथ की तर्जनी अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
3 :- ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां वषट ! ( दोनों हाथ की मध्यमा अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
4 :- ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुम् ! (दोनों हाथ की अनामिका अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
5 :- ॐ विच्चै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ! (दोनों हाथ की कनिष्ठिका अँगुलियों पर स्पर्श करें !)
6 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै करतल कर पृष्ठाभ्यां फट् ! (दोनों हाथ की हथेली और बाहर के भाग पर स्पर्श करें !)

पुनः अंग न्यास करें :-

1 :- ॐ ऐं हृदयाय नमः ! (ह्रदय पर स्पर्श करें !)
2 :- ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ! (सिर पर स्पर्श करें !)
3 :- ॐ क्लीं शिखायै वषट् ! (शिखा पर स्पर्श करें !)
4 :- ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् ! (दोनों कन्धों पर स्पर्श करें !)
5 :- ॐ विच्चै नेत्र त्रयाय वौषट् ! (दोनों नेत्रों पर स्पर्श करें !)
6 :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै अस्त्राय फट् ! (सिर के ऊपर से दाहिना हाथ घुमाकर ताली बजा दें !)

पूजा, जप आदि के उपरान्त आसन त्यागने से पूर्व ही पूजा व जप से पहले किये गए दिग्बन्ध (न्यासों) को घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में हाथ घुमाते हुए चुटकी बजा कर “ॐ सर्व दिग्बन्ध विमोचय हूं फट” अथवा “ॐ सर्व दिग्बन्ध उत्कीलय हूं फट” बोलते हुए दिग्बन्ध को अवश्य ही खोल देना चाहिए ।

इसके उपरान्त अपने आसन के नीचे पृथ्वी पर थोड़ा जल डालकर उस जल को “ॐ शक्राय नमः” अथवा “ॐ विष्णवे नमः” बोलते हुए तीन बार मस्तक पर लगा लेने के उपरान्त ही आसन से उठकर गुरु व माता, पिता सहित सभी ज्येष्ठ जनों को प्रणाम करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए ।
ऊपर लिखी हुई प्रक्रिया प्रत्येक दिवस दोहराना अनिवार्य है ! यदि उपरोक्त प्रक्रिया को अपने अनुसार व्यवस्थित करके उपयोग में लेना चाहते हैं तो यह साधना अनुष्ठान प्रारम्भ ही न करें तो अति उत्तम होगा !


1,25000 (सवा लाख) मन्त्र जप सम्पन्न होने के उपरान्त इसका दसांश भाग अर्थात 12500 (बारह हजार पांच सौ) मन्त्रों से हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राहमण भोज अवश्य सम्पन्न करें !

कुछ विद्वानजन जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राहमण भोज कराने के स्थान पर उतनी संख्या में मन्त्र जप करने की सलाह देते हैं, किन्तु ऐसी मुर्खता कभी नहीं करनी चाहिए ओर शास्त्रीय विधान द्वारा जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राहमण भोज कराकर ही अपने साधना, अनुष्ठान, पुरश्चरण को विधिवत् सम्पन्न करना चाहिए ।

नवार्ण मन्त्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मन्त्र जप से होती है, परंतु कोई साधक न कर पाये तो नित्य 1, 3, 5, 7, 11 या 21 माला मन्त्र जप करना उत्तम होगा, इस विधि से नवार्ण मन्त्र साधना सम्पन्न करने से सम्पूर्ण इच्छायें पूर्ण होती हैं, समस्त दु:ख, दारिद्री रोगादि समाप्त होते हैं और धन, समृद्धि का आगमन सहज रूप से होता है ।

यदि नवार्ण मन्त्र सिद्ध नहीं हो रहा हो तो “ऐं”,“ह्रीं”,“क्लीं” तथा “चामुण्डायै विच्चै” के पृथक पृथक सवा लाख जप करें फिर नवार्ण का पुरश्चरण सम्पन्न करें ।