श्री श्रीचक्रराज स्तोत्र !

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प्रोक्ता पञ्चदशी विद्या महात्रिपुरसुन्दरीम । श्रीमहाषोडशी प्रोक्ता महामाहेश्वरी सदा ॥ १॥

प्रोक्ता श्रीदक्षिणा काली महाराज्ञीति सञ्ज्ञया । लोके ख्याता महाराज्ञी नाम्ना दक्षिणकालिका ।
आगमेषु महाशक्तिः ख्याता श्रीभुवनेश्वरी ॥ २॥

महागुप्ता गुह्यकाली नाम्ना शास्त्रेषु कीर्तिता । महोग्रतारा निर्दिष्टा महाज्ञप्तेति भूतले ॥ ३॥

महानन्दा कुब्जिका स्यात् लोकेऽत्र जगदम्बिका । त्रिशक्त्याद्याऽत्र चामुण्डा महास्पन्दा प्रकीर्तिता ॥ ४॥

महामहाशया प्रोक्ता बाला त्रिपुरसुन्दरी । श्रीचक्रराजः सम्प्रोक्तस्त्रिभागेन महेश्वरि ॥ ५॥