श्री ज्योतिर्मणि पीठ के बारे में !

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श्री ज्योतिर्मणि पीठ उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश के राम झूला से 25 किलोमीटर आगे श्री नीलकंठ महादेव मंदिर से आधा किलोमीटर दूर नीलकंठ महादेव मंदिर से रामझूला की ओर जाने वाले पैदल मार्ग पर भैरों मंदिर से ऊपर पश्चिम दिशा के पर्वत शिखर पर पूर्ण एकांत क्षेत्र में स्थित है । स्थानीय क्षेत्र में इस स्थान को “मणिकूट वाले बाबा की कुटिया” के नाम से जाना जाता है ।

श्री ज्योतिर्मणि पीठ में अष्टधातु से निर्मित भगवती महात्रिपुर सुन्दरी राजराजेश्वरी ललिताम्बा के सर्वांग स्वरूप श्रीचक्रराज श्रीयंत्र विराजमान हैं , श्री ज्योतिर्मणि पीठ में श्रीकुल स्वामिनी भगवती पराम्बा की पूजा, साधना की जाती है , व श्रीविद्या साधना करने वाले साधकों को श्रीविद्या साधना व कुण्डलिनी, क्रियायोग साधना करने वाले साधकों को कुण्डलिनी, क्रियायोग व अन्य साधनाओं के सम्बन्ध में व्याप्त भ्रामकताओं, जटिलताओं, दुविधाओं आदि का निवारण कर साधना के विषय में उचित मार्गदर्शन देने के साथ-साथ दीक्षाएं प्रदान की जाती हैं ।

जिन सिद्धांतों से वैदिक मन्त्रों के अतिरिक्त शाबर मन्त्र, क्षेत्रीय लोकदेवताओं व अन्य आदिवासी आदि संस्कृतियों के मन्त्रों का सृजन हुआ उन्हीं सिद्धांतों के आधार पर श्री ज्योतिर्मणि पीठ द्वारा श्री यन्त्र, श्रीविद्या, संजीवनी तथा मृतसंजीवनी विद्या सहित अन्य वैदिक एवं अगमशास्त्रों के मन्त्र, तन्त्र, तथा यन्त्रों की साधना विधियों एवं प्राण ऊर्जा, मानसिक ऊर्जा, ब्रह्माण्डीय ऊर्जा पर साधना पद्धतियों तथा कुण्डलिनी व क्रियायोग आदि आध्यात्मिक विज्ञान की गहन साधनाओं के वैज्ञानिक तथा सैद्धांतिक अनुसंधान पर कार्य किये जा रहे हैं, ताकि आम जनमानस तक पहुँचाने के लिए साधनाओं को अत्यंत सहज व सरल बनाया जा सके ।

श्री ज्योतिर्मणि पीठ के इस प्रयास से अनेक साधनाओं को सहज, सरल व सुगम बना दिया गया है, जिससे इस सम्बंधित जिन विषयों में अनुसन्धान के परिणाम सार्थक रहे हैं , उन साधनाओं को योग्य साधकों को दीक्षित कर आम जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है ।

वैदिक एवं अगमशास्त्रों में असंख्य साधनाएं व पद्धतियाँ ऐसी हैं जो कि प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता हैं ओर हर कोई व्यक्ति उनको प्राप्त कर सफल भी होना चाहता है किन्तु साधनाओं में लगने वाले दीर्घ समय, सामग्री, व उचित जानकारियों के अभाव तथा सिद्धांतों के विपरीत मनमुखी विचारधारा के चलते ये दुर्लभ विधियाँ विलुप्त होने, ओर आम जनमानस अपनी ही त्रुटियों ओर मनमुखी रीती से साधनाएँ कर असफल होने के कारण अपने धन व बहुमूल्य समय को गंवाकर इनसे विमुख होने की चरम सीमा पर खड़े जनमानस को पुनः अपनी वैदिक संस्कृति से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है ।