श्री बद्रीनाथ मन्दिर !

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बदरीनाथ मंदिर, जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है । यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ जी को समर्पित है । यह सनातन धर्मावलम्बियों के चार धाम में से एक धाम भी है । ऋषिकेश से यह 294 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है ।

बदरीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की उपत्यका में अवस्थित सनातन धर्मावलम्बियों का मुख्य यात्राधाम माना जाता है । मन्दिर में श्री नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है । यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है । प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बि की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे । यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है । अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं । यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं । यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।

बदरीनाथ जी की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, जो कि चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है । कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी । सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे व वर्तमान में भी हैं । जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की । शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए । शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की । तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार पुनः नारदकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की ।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना ।

पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए । माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये ? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया । इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया । यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है ।

जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे । उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं । कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा ।

जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड भैरवी चक्र के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है ।

बदरीनाथ मन्दिर के समीप अन्य दर्शनीय स्थल हैं :-

अलकनंदा के तट पर स्थित तप्त-कुंड ।

धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल ।

पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप (साँपों का जोड़ा) ।

शेषनाग की छाप वाला एक शिलाखंड–शेषनेत्र ।

चरणपादुका :- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं; (यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था।)

बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ पर्वत ।

माता मूर्ति मंदिर :- जिन्हें बदरीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है ।

माणा गाँव :- इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है।

वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था ।

भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है ।

वसु धारा :- यहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी । ये जगह माणा से 5 किलोमीटर दूर है । इस धारा की बूंदें हर किसी के ऊपर नहीं गिरती हैं यह एक गहन आश्चर्य है, कहते हैं कि जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है ।

लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है ।

सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) :- कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था ।

अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है ।

सरस्वती नदी उद्गम :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है ।

बदरीनाथ मन्दिर के समीप ही बामणी गाँव ऊर्वशी अप्सरा प्राकट्य स्थल है ।

एक विचित्र सी बात है।.. जब भी आप बदरीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं ।