दश महाविद्याओं की संयुक्त साधना के नाम पर भ्रांतियों का प्रसार !

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बहुत से सज्जन दश महाविद्याओं की समग्र साधना करने हेतु प्रयासरत रहते हैं, व व्यवसायिक प्रचारकों द्वारा अपने अर्थोपार्जन हेतु प्रकाशित साहित्यों को पढ़ – पढ़ कर वास्तविक जानकारी के अभाव में इसी भ्रान्ति के वशीभूत होकर वह अपने बहुमूल्य जीवन के बहुमूल्य समय, धन, मानसिक शान्ति, आस्था व श्रद्धा का स्वयं ही हनन कर बैठते हैं !

दश महाविद्याओं की समग्र दीक्षा तो केवल आदिदेव महादेव शिव ही प्रदान कर सकते हैं, उनके अतिरिक्त इस भूमण्डल पर ऐसा अन्य कोई नहीं कर सकता है ! दश महाविद्याओं की दीक्षा लेना या देना तो बहुत दूर की बात है, क्योंकि पांच महाविद्या साधना से आगे तो जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भी नहीं कर पाए थे ! कोई भी सक्षम साधक किसी एक कुल की चार महाविद्याओं की साधना को ही बड़ी मुश्किल से कर पाता है, जिसके बाद अन्य साधना करने की न तो आवश्यकता ही रह जाती है और न ही उपयोगिता ! तो फिर दश महाविद्याओं की समग्र दीक्षा कहाँ से मिल सकती है ???

दश महाविद्याओं की केवल उपासना की जा सकती है जिसके लिए दीक्षा विधान की आवश्यकता नहीं होती है केवल पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा पद्धति ही पर्याप्त होती है, अपवाद स्वरूप कुछ लोग दश महाविद्याओं की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा पद्धति से उपासना या पुस्तकों से दश महाविद्याओं के (दीक्षा हीन) मन्त्र ग्रहण कर उन मन्त्रों के पुरश्चरण कर अथवा सीधे पुस्तक से ही पढ़कर (स्वयं दीक्षा हीन होते हुए भी) अपने शिष्यों को दश महाविद्याओं के दीक्षा विधान पूर्ण कराते हैं, जो कि किसी भी साधना के साधना विधान, शास्त्र व सिद्धान्त के अनुरूप नहीं है, ओर स्वयं गुरु से दीक्षा लेकर साधना पूर्ण किये बिना पुरश्चरण किये हुए अथवा नहीं किये हुए मन्त्रों की अपने शिष्यों को दीक्षा देना भर्त्सनीय अपराध है !

और साथ ही उपासना और साधना में बहुत अधिक भेद होता है, ओर मन्त्र सिद्ध करने व मन्त्र के देवता को सिद्ध करने में भी बहुत अधिक भेद होता है ! किन्तु कभी भी विधिवत दश महाविद्याओं की समग्र साधना पूर्ण नहीं की जा सकती है, केवल समग्र उपासना ही की जा सकती है, आदिकाल से यही परम्परा चली आ रही है !

कोई भी सक्षम साधक केवल अपने द्वारा साधित किसी एक, दो, तीन अथवा पूर्णाभिषेक में दीक्षित होकर अपने द्वारा साधित किसी एक कुल की चार महाविद्याओं की साधना को पूर्ण करके अधिकाधिक एक या दो अन्य महाविद्याओं की साधना ही कर सकता है, अपने द्वारा साधित अधिकाधिक पांच या छः महाविद्याओं तक की ही दीक्षा प्रदान कर सकता है !

“श्री ज्योतिर्मणि पीठ” से भी केवल श्रीकुल की चार महाविद्याओं षोडशी, त्रिपुरसुन्दरी, कमला (राजराजेश्वरी), ललिता महाविद्या तथा दो अन्य महाविद्याओं कामाक्षी व भुवनेश्वरी महाविद्या की दीक्षाएं व साधनायें ही संपन्न कराई जाती हैं !