सिद्धपीठ देवलगढ़ मन्दिर !

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भारतवर्ष में आपको कदम कदम पर अनोखे चमत्कार देखने को मिलते हैं । खास तौर पर भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य को देवों की भूमि कहा जाता है । इस पवित्र देवभूमि में एक रहस्यमयी मंदिर है, जिसे माँ श्री राजराजेश्वरी मन्दिर के नाम से जाना जाता है ।

इस मंदिर के निकट में ही अनेक नाथ संप्रदाय के सिद्ध योगियों की समाधियां हैं । उत्तराखंड के श्रीनगर से 15 किलोमीटर दूर देवलगढ़ में ये मंदिर स्थित है । इस गढ़ का इतिहास अपने आप में अनोखा रहा है । पुराने समय में उत्तराखंड में 52 छोटे छोटे गढ़ थे । इनमें से एक गढ़ था देवलगढ़ जिसे चांदपुर गढ़ के राजा अजपाल ने अपनी राजधानी बनवाया था । 15 वीं शताब्दी में राजा अजयपाल ने इस गढ़ को राजधानी बनाया था । कहा जाता था कि देवलगढ़ सामरिक दृष्टि से बहुत ही सुरक्षित स्थान था । 1512 में इस गढ़ को राजा ने राजधानी बनाया था । इसके 6 साल के बाद ही अजयपाल ने अपनी राजधानी श्रीनगर बनाई । अजयपाल ने 19 सालों तक शासन किया था । वो पहला राजा था जिसने उत्तराखण्ड के 52 गढ़ों में से 48 गढ़ों पर विजय प्राप्त की थी । इसी राज परिवार की कुलदेवी राज राजेश्वरी थी । श्री राजराजेश्वरी मन्दिर देवलगढ़ का सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मन्दिर है ।

स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड में मां के इस मंदिर का वर्णन है । यहां पर प्राचीन पुरातात्विक धरोहर “सोम का मांडा” में अनेक प्राचीन शिलालेख स्थापित किए गए हैं । इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है । यहां मां श्री राजराजेश्वरी मन्दिर के समीप ही माँ गौरा देवी मन्दिर एवं सत्यनाथ योगी की समाधि स्थित हैं ।

इस मंदिर का निर्माण 15 वीं शताब्दी में ही राजा अजयपाल के शासन काल में कराया गया था । इस मन्दिर में तीन मंजिलें हैं । तीसरी मंजिल के दाहिने कक्ष में वास्तविक मंदिर है । इस कक्ष में देवी मां की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएं हैं । इन सभी प्रतिमाओं में मां श्री राजराजेश्वरी जी की स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित है । यह प्रतिमा अत्यन्त ही सुंदर है । इस मन्दिर में राजा अजयपाल द्वारा स्थापित उन्नत श्री यन्त्र की पूजा होती है । इस मंदिर में महाकाली यन्त्र, कामख्या यन्त्र, महालक्ष्मी यन्त्र, बगलामुखी यन्त्र और श्रीयन्त्र के दर्शन किये जाते हैं, जिनकी प्रतिदिन प्रातःकाल विधिवत पूजा होती है ।

देवलगढ़ के माँ श्री राजराजेश्वरी मन्दिर परिसर में ही श्री महाकाली जी, श्री माँ तारा के मन्दिर एवं यज्ञशाला विद्यमान है, जिसमें प्रतिदिन मन्दिर के मुख्य पुजारी श्री कुंजिका प्रसाद उनियाल जी द्वारा विधिवत् पूजा व यज्ञ किया जाता है ।

नवरात्री के शुभ अवसर पर इस मंदिर में देश के विभिन्न भागों से हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं तथा रात्री के समय श्री राजराजेश्वरी यज्ञ का आयोजन किया जाता है ।