मणिकूट पर्वत की महिमा !

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मणिकूट पर्वत, हिमालय व नीलकंठ महादेव के पौराणिक इतिहास की स्कंद पुराण के केदारखंड में चर्चा है। देवाधिदेव महादेव जी द्वारा प्रणीत ‘योगिनी तन्त्र’ के नौवें पटल में मणिकूट, नीलकंठ महादेव, सिद्धों का कोट, भुवनेश्वरी देवी, सुखवासिनी देवी आदि का वर्णन मिलता है । ‘योगिनी तन्त्र’ में भगवान शंकर व पार्वती संवाद है, जिसमें पार्वती भगवान शंकर से प्रश्न करती हैं और भगवान शंकर उनके प्रश्नों का उत्तर देते हैं ।

तत: प्रभाते देवेशि मणिकूटस्थ चौत्तरे ।
वल्ल भाख्या नदी पुण्या सर्व पापप्रमोचनी ।।
अर्थात शिवशंकर पार्वती से कहते हैं कि प्रभात काल में मणिकूट के उत्तर की और सब पापों का नाश करने वाली बल्लभा नदी बहती है। बल्लभा नदी में माघ या फाल्गुन के महीने में चतुर्दशी में स्नान करने से महापातक नष्ट होते हैं और बल्लभा नदी में स्नान करने के पश्चात नीलकंठ के दर्शन करने से सात जन्मकृत पाप नष्ट होते हैं। मणिकूट पर्वत से तीन पवित्र नदियों के निकलने का उल्लेख मिलता है। ये नदियां नंदिनी, पंकजा व परमोत्तम मधुमती नदी हैं। इन नदियों की उपासना की गयी है और इन्हें पापों का नाश करने वाली, कल्याणकारी बताया गया है।
मणिकूटस्थ पूर्वे तु नाति दूरे महेश्वरी।
विष्णु पुष्कारक नाम सर्वतार्थोभ्दवं जनम।।

अर्थात मणिकूट के पूर्व में थोड़ी ही दूर विष्णु पुष्कर नामक सर्व तीर्थो के जल से परिपूर्ण एक तीर्थ है। मणिकूटाचल में विष्णु भगवान हृयग्रीव का रूप धारण करके अवस्थित है। मणिकूट पर्वत की प्रार्थना करते हुए कहा गया है।
मणिकूट गिरिश्रेष्ठ पतिवर्ण त्रिलोचन।
त्वदधारोहणं कृत्वा द्रक्ष्यामि भवनं तथा।।

अर्थात ‘हे गिरिश्रेष्ठ मणिकूट तुम त्रिनेत्रधारी हो और आपका पीला वर्ण है।, तुम्हारे आरोहण करके मंदिरों का दर्शन करते हैं? मणिकूट पर्वत पर पूर्व अथवा उत्तर मुख करके चढ़ना चाहिए। मणिकूट पर्वत पर मुख्य रूप से भगवान विष्णु के अवतार हृयग्रीव विष्णु की उपासना की जाती है।
इडासुर हयग्रीव मुरारे मधुसूदन।
मणिकूट कृतावास हयग्रीव नमोस्तुते।।

अर्थात हे इडासुर! हे हयग्रीव! हे मुरारे! हे मधुसूदन! हे मणिकूट में वास करने वाले! हे हृयग्रीव! मैं आपको नमस्कार करता हूं।

मणिकूट पर्वत स्वयं शिवस्वरूप है। मणिकूट पर्वत को त्रिलोचन कहा गया है। मणिकूट पर्वत में नरसिंह व नागराजा की पूजा की महत्ता है। केदार खंड में चंद्रकूट पर्वत के ऊपर भगवती भुवनेश्वरी के मंदिर के होने का वर्णन है। कुछ लेखक चंद्रकूट व मणिकूट को एक ही नाम मानते हैं। यदि इसमें तर्कसंगत है तो पवित्र बल्लभ नदी कालिकुण्ड होकर घूटगाड़ में हेमवती (हिवल) नदी में मिलती है। वर्तमान में मणिकूट पर्वत को एक चोटी तक सीमित करके नहीं रखा जाता बल्कि ऋषिकेश से हरिद्वार के मध्य गंगा तट के पूर्वी भाग के पर्वत मालाओं का शिख मणिकूट कहलाता है। लक्ष्मण झूला फूलचट्टी से लेकर बिंदुवासिनी गौरीघाट तक मणिकूट पर्वत का आधार क्षेत्र है। मणिकूट के निकटवर्ती पर्वतों को मणिकूट पर्वत श्रृंखला नाम दिया गया है। जहां मणिरत्नों का विशाल भंडार है तथा जो स्त्री पुत्र व धनधान्य दाता है ।

तपस्वी जन मणिकूट की परिक्रमा अलौकिक शक्तियों के संग्रह करने तथा परमात्मा प्राप्ति के लिए करते हैं, ओर गृहस्थ श्रद्धालु मणिकूट की परिक्रमा सांसारिक लाभ के लिए करते रहे हैं । अधिकांश श्रद्धालु पारिवारिक सुख, पुत्र प्राप्ति, धन सम्पदा चाहने हेतु करते रहे हैं । मणिकूट परिक्रमा एक ही दिन अक्षय तृतीया (सतुवा तीज) के दिन मात्र जौ के सत्तु का आहार लेकर व मौन रहकर नंगे पैर किए जाने का विधान है, इस पदयात्रा को कठिन महसूस करने के कारण लोगों ने धीरे-धीरे इस यात्रा को त्याग ही दिया था, ओर अब इस दिव्य यात्रा को वाहन, वाद्ययंत्रों, भंडारे के विविध पकवान से सुसज्जित कर मनमुखी प्रवृत्ति के लोगों ने इस यात्रा को भी लोकदिखावे (मनोरंजन) का रूप दे ही दिया है, जिससे यह यात्रा पुनर्जीवित तो अवश्य हो गयी है, किन्तु इस लोकदिखावे से अपना वास्तविक स्वरूप खो देगी, और इसका परिणाम भी संभवतः वही होगा जो सिद्धांतों के विपरीत मनमुखी आचरण से सदैव ही होता आया है ।

हिमालय का महत्वपूर्ण क्षेत्र मणिकूट-हिमालय देवभूमि व तपोभूमि दोनों हैं। यहां महर्षि कण्व वंश के 33 ऋषि वेदमंत्रों के दृष्टा रहे हैं। इन ऋषियों का प्रमुख मुख्यालय कण्वाश्रम था। नीलकंठ महादेव, भुवनेश्वरी मंदिर झिलमिल गुफा, विंदवासिनी मंदिर जैसे पवित्र तीर्थ स्थानों का वर्तमान समय में भक्तों के बीच प्रसिद्ध करने में संतो-साधुओं का योगदान है। कालीकुण्ड बाल कुवांरी मंदिर, गणेश गुफा आदि प्रसिद्धि बाहर के श्रद्धालुओं में धीरे-धीरे पहुंच रही है।
सर्वशक्तिमान माता श्री भुवनेश्वरी एवं त्रिलोकी नाथ श्री नीलकंठ महादेव व श्री ज्योतिर्मणि महादेव को अपने शिखर पर धारण करने वाले तपोस्थली ऊर्जावान, दिव्यगुरु तत्व को गर्भ में छुपाए हुए माता गंगा को अपने गोद में संजोये हुए द्रोण, विन्वेकश्वर, महावगढ़ भैरवगढ़ी नागदेवगढ़ आदि पौराणिक पर्वत श्रंखलाओं के मध्य स्थिति, दैविक, दैहिक, भौतिक त्रिविध संतापों को दूर करने वाला दिव्य मानवों को आलौकिक शक्ति, भक्ति सुख शांति, मोक्ष व चमत्कारिक शक्ति प्रदान करने वाले पर्वतराज मणिकूट हैं। जिसकी अलौकिकता, दिव्यता व पवित्रता का वर्णन वेद और शास्त्रों में भी मिलता है ।