श्री महात्रिपुरसुन्दरी का श्यामा और शाम्भवी सानिध्य !

कामेश्वरी की स्वारसिक समरसता को प्राप्त परा-तत्व ही महा त्रिपुरसुंदरी के रूप में विराजमान हैं तथा यही सर्वानन्दमयी, सकलाधिष्ठान ( सर्व स्थान में व्याप्त ) देवी ललिताम्बिका हैं। देवी में सभी वेदांतो का तात्पर्य-अर्थ समाहित हैं तथा चराचर जगत के समस्त कार्य इन्हीं देवी में प्रतिष्ठित हैं। देवी में न शिव की प्रधानता हैं और न ही शक्ति की, अपितु शिव तथा शक्ति (‘अर्धनारीश्वर’) दोनों की समानता हैं। समस्त तत्वों के…

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श्रीबाला त्रिपुरसुन्दरी नाम का महत्व एवं परिचय !

माँ श्री बाला त्रिपुर-सुन्दरी मां भगवती का बाला सुंदरी स्वरुप है. ‘दस महा-विद्याओ’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं । वास्तव में आदि-शक्ति एक ही हैं, उन्हीं का आदि रुप ‘काली’ है और उसी रुप का विकसित स्वरुप ‘षोडशी’ है, इसी से ‘षोडशी’ को ‘रक्त-काली या दक्षिणकाली’ नाम से भी स्मरण किया जाता है । भगवती तारा का रुप ‘काली’ और ‘षोडशी’ के मध्य का…

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त्रिपुरा शब्द का महत्व एवं परिचय !

बाला, बाला-त्रिपुरा, त्रिपुरा-बाला, बाला-सुंदरी, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, पिण्डी-भूता त्रिपुरा, काम-त्रिपुरा, त्रिपुर-भैरवी, वाक-त्रिपुरा, महा-लक्ष्मी-त्रिपुरा, बाला-भैरवी, श्रीललिता राजराजेश्वरी, षोडशी, श्रीललिता महा-त्रिपुरा-सुंदरी, के अन्य भेद सभी श्री श्री विद्या के नाम से पुकारे जाते है | इन सभी विद्या की उपासना ऊधर्वाम्नाय से होती है | बाला, बाला-त्रिपुरा और बाला-त्रिपुर-सुंदरी नामों से एक ही महा विद्या को सम्बोधित किया जाता है | किसी भी नाम से उपासना की जाये, उपासना तो जगन्माता की ही की जाती…

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अत्यंत गोपनीय तंत्रराज (कादीमत) का परिचय !

कादी विद्या अत्यंत गोपनीय है। इसका रहस्य गुरू के मुख से ग्रहण योग्य है। सम्मोहन तंत्र के अनुसार तारा, तारा का साधक, कादी तथा हादी दोनों मत से संश्लिष्ट है। हंस तारा, महाविद्या, योगेश्वरी कादियों की दृष्टि से काली, हादियों की दृष्टि से शिवसुदरी और कहादी उपासकों की दृष्टि से हंस है। श्रीविद्यार्णव के अनुसार कादी मत मधुमती है। यह त्रिपुरा उपासना का प्रथम भेद है। दूसरा मत मालिनी मत (काली…

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हादी कादी सहित श्रीविद्या के सभी संप्रदायों का परिचय !

श्रीविद्या के मुख्य 12 संप्रदाय हैं। इनमें से बहुत से संप्रदाय लुप्त हो गए है, केवल आनन्द भैरव, मन्मथ और कुछ अंश में हयग्रीव व लोपामुद्रा का संप्रदाय अभी जीवित है । कामराज विद्या (कादी) और पंचदशवर्णात्मक तंत्रराज और त्रिपुरोपनिषद के समान लोपामुद्रा विद्या आदि भी पंचदशवर्णात्मक हैं। कामेश्वर अंकस्थित कामेश्वरी की पूजा के अवसर पर इस विद्या का उपयोग होता है। लोपामुद्रा अगस्त्य की धर्मपत्नी थीं। वह विदर्भराज की कन्या…

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श्रीविद्या के आदि उपासकों का परिचय !

श्री विद्या देवी ललिता त्रिपुरसुन्दरी से सम्बन्धित तन्त्र विद्या का आदि सनातन सम्प्रदाय है। ललितासहस्रनाम में इनके एक सहस्र (एक हजार) नामों का वर्णन है। ललिता सहस्रनाम में श्रीविद्या के संकल्पनाओं का वर्णन है। श्रीविद्या सम्प्रदाय आत्मानुभूति के साथ-साथ भौतिक समृद्धि को भी जीवन के लक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है। श्रीविद्या का साहित्य विशाल है। अलग-अलग ग्रन्थों में इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित कुछ अलग-अलग बातें कहीं गयी हैं किन्तु…

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श्रीविद्या विषयक प्राचीन व मूल ग्रन्थों का परिचय !

श्रीविद्या विषयक कुछ प्राचीन व मूल ग्रन्थों का परिचय ये हैं – 1. तंत्रराज – इसकी बहुत टीकाएँ हैं। सुभगानन्दनाथ कृत मनोरमा मुख्य है। इसपर प्रेमनिधि की सुदर्शिनी नामक टीका भी है। भाष्स्कर की और शिवराम की टीकाएँ भी मिलती हैं। 2. तंत्रराजोत्तर 3. परानन्द या परमानन्दतंत्र – किसी किसी के अनुसार यह श्रीविद्या का मुख्य उपासनाग्रंथ है। इसपर सुभगानंद की सुभगानंद संदोह नाम्नी टीका थ। कल्पसूत्र वृत्ति से मालूम होता…

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श्री अष्ट लक्ष्मी महामन्त्र सिद्धि विधानम् !

आदौ श्री रमानाथ ध्यानं श्रीवत्सवक्षसं विष्णुं चक्रशङ्खसमन्वितम् । वामोरुविलसल्लक्ष्म्याऽऽलिङ्गितं पीतवाससम् ॥ सुस्थिरं दक्षिणं पादं वामपादं तु कुञ्जितम् । दक्षिणं हस्तमभयं वामं चालिङ्गितश्रियम् ॥ शिखिपीताम्बरधरं हेमयज्ञोपवीतिनम् । एवं ध्यायेद्रमानाथं पश्चात्पूजां समाचरेत् ॥ ऋषिः – छन्दः – देवता – विनियोगः अस्य श्रीअष्टलक्ष्मीमहामन्त्रस्य – दक्षप्रजापतिः ऋषिः – गायत्री छन्दः – महालक्ष्मीर्देवता – श्रीं बीजं – ह्रीं शक्तिः – नमः कीलकं – श्रीमहालक्ष्मीप्रसादेन अष्टैश्वर्यप्राप्तिद्वारा मनोवाक्कायसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥ करन्यासः श्रीं ह्रीं श्रीं कमले श्रीं ह्रीं…

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त्रिलोक विजय हेतु श्री त्रैलोक्य विजया अपराजिता स्तोत्रम् !

ॐ नमोऽपराजितायै । ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः । गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि । लक्ष्मीनृसिंहो देवता । ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् । हुं शक्तिः । सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः । ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥ शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ॥ २॥ नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ॥ ३॥ मार्ककण्डेय उवाच – शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् । असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥ ४॥ ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते…

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साधना करतें समय साधक में विकसित होने वाले लक्षण !

शारीरिक दर्द, विशेष रूप से गर्दन, कंधे और पीठ में। यह आपके आध्यात्मिक डीएनए स्तर पर गहन परिवर्तन का परिणाम है क्योंकि “ईश्वरीय बीज” जागता है।यह साधना करतें रहने से ठिक हो जाएगा। बीना किसी कारण के लिए गहरी आंतरिक उदासी महसूस करना यह अनुभव से आप अपने अतीत (इस जीवनकाल और अन्य) कि दुखद घटनाओं से से मुक्त होने पर अनुभव करते हैं और इससे अकारण दुःख की भावना पैदा…

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